Thursday, March 24, 2011

वाणी

गोरखवाणी
पवन ही जोग, पवन ही भोग,
पवन इ हरै, छतीसौ रोग,
या पवन कोई जाणे भव्, सो आपे करता,
आपे दैव! ग्यान सरीखा गिरु ना मिलिया,
चित्त सरीखा चेला,
मन सरीखा मेलु ना मिलिया,
ताथै, गोरख फिरै, अकेला !

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