Thursday, May 22, 2025

Thursday, March 24, 2011

श्री सद्रगुरु साईनाथ

गेहूँ पीसने की कथा :
एक बार साई बाबा मुँह हाथ धोने के पश्चात चक्की पीसने की तैयारी करने लगे । उन्होंने फर्श पर एक टाट का टुकड़ा बिछाया, उस पर हाथ से पीसने वाली चक्की में गेहूँ डालकर उन्हें पीसना आरम्भ कर दिया । बाबा के चक्की पीसने का समाचार शीघ्र ही सारे गाँव में फैल गया और उनकी यह विचित्र लीला देखने के हेतु सभी नर-नारियों की भीड़ मसजिद की ओर दौड़ पडी़ ।
उनमें से चार निडर स्त्रियाँ भीड़ को चीरता हुई ऊपर आई और बाबा को बलपूर्वक वहाँ से हटाकर हाथ से चक्की का खूँटा छीनकर तथा उनकी लीलाओं का गायन करते हुये उन्होंने गेहूँ पीसना प्रारम्भ कर दिया ।
पहले तो बाबा क्रोधित हुए, परन्तु फिर उनकी भक्ति देखकर वे शांत होकर मुस्कराने लगे । पीसते-पीसते उन स्त्रियों के मन में ऐसा विचार आया कि बाबा के न तो घरदृार है और न इनके कोई बाल-बच्चे है तथा न कोई देखरेख करने वाला ही है । वे स्वयं भिक्षावृत्ति दृारा ही निर्वाह करते हैं, अतः उन्हें भोजनाआदि के लिये आटे की आवश्यकता ही क्या हैं । बाबा तो परम दयालु है । हो सकता है कि यह आटा वे हम सब लोगों में ही वितरण कर दें । इन्हीं विचारों में मगन रहकर गीत गाते-गाते ही उन्होंने सारा आटा पीस डाला । तब उन्होंने चक्की को हटाकर आटे को चार समान भागों में विभक्त कर लिया और अपना-अपना भाग लेकर वहाँ से जाने को उघत हुई । अभी तक शान्त मुद्रा में निमग्न बाब तत्क्षण ही क्रोधित हो उठे और उन्हें अपशब्द कहने लगे- स्त्रियों क्या तुम पागल हो गई हो । क्या कोई कर्जदार का माल है, जो इतनी आसानी से उठाकर लिये जा रही हो । अच्छा, अब एक कार्य करो कि इस अटे को ले जाकर गाँव की सीमा पर बिखेर आओ ।पूछने पर पता चला कि गाँव में हैजे का जोरो से प्रकोप है और उसके निवारणार्थ ही बाबा का यह उपचार है ।

आटा पीसने का तात्पर्य :


अभी तक जो कुछ भी पीसा था, वह गेहूँ नहीं, वरन हैजा था , जो पीसकर नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया । इस घटना के पश्चात ग्रामवासी सुखी हो गये ।
बाब शिरड़ी में 60 वर्षों तक रहे और इस दीर्घ काल में उन्होंने आटा पीसने का कार्य प्रायः प्रतिदिन ही किया । पीसने का अभिप्राय गेहूँ से नहीं, वरन् अपने भक्तों के पापो, दुर्भागयों, मानसिक तथा शाशीरिक तापों से था । उनकी चक्की के दो पाटों में ऊपर का पाट भक्ति तथा नीचे का कर्म था । चक्की का मुठिया जिससे कि वे पीसते थे, वह था ज्ञान । बाबा का दृढ़ विश्वास था कि जब तक मनुष्य के हृदय से प्रवृत्तियाँ, आसक्ति, घृणा तथा अहंकार नष्ट नहीं हो जाते, तब तक ज्ञान तथा आत्मानुभूति संभव नहीं हैं ।
।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

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