Tuesday, May 20, 2025

Thursday, March 24, 2011

श्री नखत सिध बन्न सा



नखत सिद्ध बन्ना सा
राजस्थान के जेसलमेर जिले के गाँव गिरसर की सोलंकी ढनी निवासी मेहजल जी के सुपुत्र गोविंद सिंह जी के कोई ओलद नहीं थी | वे राजपूत जाति से थे | बाबा निरंजन ने क्र्पा करके धुणे की भभूती दी थी | भभूती के प्रताप से गोविंद सिंह सोलंकी के भभूता सिद्ध, शेर सिंह, नरसिंग तथा सिणगारो ने जन्म लिया था | भभूता सिद्ध जी के काली नाड़ी मे शरीर त्यागने के पश्चात जो सगपण भभूता सिद्ध के लिए किया गया था | वहाँ उनके छोटे भाई शेर सिंह का सगपण गाँव चोयण पीड़ी यारी के यहाँ विवाह शुभ लगन मे हुआ था | श्री शेर सिंह जी के पुत्र अलसी सिंह जी के तीन पुत्र हुए | कानाह सिंह जी, जबर सिंह जी तथा प्रलाद सिंह जी | प्रलाद सिंह जी का शादी के दो महीने बाद ही स्वर्गवास हो गया | कानाह सिंह जी के सबसे पहले पुत्री ने जन्म लिया जिसका नाम सुगना कंवर रखा गया | दूसरे नंबर पर नखत सिंह बन्ना सा ने जन्म लिया | उनके बाद भगवान सिंह जी, भीख सिंह जी, रूप सिंह जी, बाबू सिंह जी और जीवण सिंह जी पाँच भाइयों ने जन्म लिया | ये सात बहन भाई थे | कानाह सिंह जी के परिवार मे मांस – मदिरा का नाम तक नहीं लिया जाता अगर कोई संबंधी मदिरा पिया हुआ मिल जाए तो ये लोग उससे कोई बात नहीं करते ये उनकी विषेश नियम धारा है | दादी सा श्रीमति बादल देवी के बताए अनुसार कानाह सिंह जी की धर्म पत्नी का नाम सीरिया देवी था जोकि ग्राम गिरसर की थी | नखत बन्ना सा का जन्म २०११ मे फागुन लगते तीज मंगलवार को हुआ था | नखत बन्ना सा सोलंकी ढनी की मिट्टी मे खेल कूदकर बड़े हुए और २-३ साल होमगार्ड मे भी रहे गाँव मे वफादार – ईमानदार होने के कारण संवत २०२५-२६ मे गेंग का पूरा काम नखत बन्ना सा को सौपा गया था और उनके अंतिम समय तक अकाल राहत के मिस्टरोल नखत बन्ना सा के पास थे |
एक बार नखत बन्ना सा के बीमार होने के कारण काम पर ना जाने के कारण चार-पाँच बन्ना सा की ढनी पहुंचे और हाथ जोड़कर कहा कि बन्ना सा आपके काम पर ना होने के कारण पाँच-सात दिन से हमारी हाजरी भी नहीं भरी गई, तब नखत बन्ना सा ने जवाब दिया कि आप लोग अपनी हाजरियों का मिस्टरोल ले जाओ ओर हमारी बाट मत देखना | हमे तो अब सर्प पकड़ने हैं और हाथ से ऊपर की तरफ इशारा किया “ वो जा रही है सर्प ” ये बन्ना सा के आंखरी शब्द थे | जब गाँव वालों को मिस्टरोल ले जाने को कहा तो अनपढ़ लोग कहने लगे कि आपके इन मिस्टरोल मे झूठ सच होगी तो हम गरीब लोग फंस जाएंगे | लेकिन बन्ना सा ने उनको कहा कि इसमे रत्ती भर भी झूठ नहीं है तुम इन्हे ले जाओ | फिर तीसरे दिन संवत २०२६    के दस्वे दिन चैत महा लगते ही वीरवार को साधारण बुखार मे अपना शरीर त्याग दिया | घर मे हाहाकार मच गया | घर मे सबसे बड़ा लड़का वो भी १८ साल की उम्र मे मामूली बुखार मे चल बसे इससे बढ़कर ओर क्या दुख होगा ? कानाह सिंह जो को इससे बड़ा झटका लगा उनका मन विचलित हो गया | उन्हे इस बात का बेहद अफसोस था कि ४०        साल से दादा भभूता सिद्ध की सेवा तन मन धन से कर रहे थे ओर मेले मे हर साल कालिया नाड़ी हाजिर हुआ जिसका मुझे आज ये फल मिला लेकिन भगवान की मरजी के आगे किसकी चलती है | सेवा पूजा अब दादी ने संभाली लेकिन दादा सा ने उस गम गो भुलवा दिया ओर कहा कि सेवा मत छोडना तुम्हारे घर के आगे मेला लगेगा | तब नखत बन्ना सा के पिता को कुछ आसवशन मिला |
संवत २०३६ अपनी बहन सुगना के मुख बोलकर कहा कि मैं नखत हूँ ओर मेरा स्थान बोरटी के पास बनाओ | एक परिवार मे बच्चे को सर्प ने काट लिया था और वह मर गया था | तब श्री नखत बन्ना सा स्वम वहाँ मोलिया साफा और हाथ मे चुटिया रस्सी लेकर पहुंचे ओर कहा कि मुझे पानी पिलाओ जो वहाँ मोजूद लोगों ने कहा कि भाई यहाँ तो एकलोता लड़का मारा पड़ा है आप पास वाले घर मे पानी पिलो बन्ना सा आँगन मे पहुंचे ओर शव के ऊपर से कपड़ा हटाते हुए कहा कि भाई उठजा इतनी गहरी नींद मत लो, लड़का जीवित खड़ा हो गया और सभी लोग हेरन रह गए ओर पुंछने लगे कि आप कौन है ? तब उन्होने कहा कि मैं कानाह सिंह जी सोलंकी का लड़का हूँ ओर चारणवाला नहर के पास मेरी ढनी है, आपका भला हुआ है तो ढनी के पास मे बोरटी व्रक्ष कि फेरी लगाने इस लड़के को ले आना | इतना कहकर बन्ना सा ने पानी नहीं पिया और घर के बाहर चले गए |  वे लोग पुंछते - पुंछते गए ओर फेरी लगाई तब से वह लड़का भदवे की शूकल पक्ष की चौथ को वहाँ फेरी लगाने आता है और हमेशा आता रहेगा |

नखत बन्ना सा के चमत्कार सुनकर अंधी दादी सा बादल देवी ने कहा “ नखतू लोग कहते है हमारा भला होता है और नखत सिद्ध है, तो मुझे भी आंखे दे दे, मुझे भी विश्वास हो जाएगा की हमारा नखत सिंह सिद्ध हो गया है “ दूसरे दिन प्रातः तीन बजे दादी सा को नखत सिंह ने पूकारा दादी उठ जा तुझे दिखाई देगा ओर बिलोना शुरू कर दे | दादी सा ने पुंछा तू कौन है भाई ? तो बन्ना सा ने जवाब दिया कि मैं नखत हूँ | लेकिन दादी को विश्वास नहीं हुआ और उन्होने कहा वह तो १० साल पहले संसार छोड़ चुका है अब नखतू कहाँ ? दादी सा आप बाहर आजाओ आपने कल याद किया था कि नखत सिद्ध होवे तो मुझे भी आंखे क्यों नहीं देता – मैं आपको आंखे देने आया हूँ | तब दादी सा उठी ओर उन्हे दिखने लगा था | वे बड़ी खुश हुई, सवेरे जब पोतों की बहुए उठी तो दादी सा को देख हंस पड़ी ओर फिर उन्हे हेरनी हुई जब उन्हे मालूम हुआ कि बन्ना सा ने दादी को आंखे दी हैं | संवत २०३६ भदवे की चाँदनी छट का कालिया नाड़ी का मेला पूरा करके जब कानाह सिंह जी घर पहुंचे तब दादी सा बाहर आगाई ओर अपनी आप बीती सुनाई | तब एक दिन काका सा जबर सिंह जी ने कहा मेरी गाय तीन साल से गायब है अगर वो मिल जाए तो नखत सिद्ध का स्थान बना देंगे और उनकी गाय भी मिल गई | उसे देखकर सभी ने बड़ा अचरज किया ओर मान गए कि नखत सिद्ध है लेकिन स्थान को बात को भूल गए | दो दिन बाद जबर सिंह के लड़के के पेट मे दर्द व घुटन सी हो गयी | तब रामूजी सोनार को बुलाया गया | रामूजी सोनार ओर नखत बन्ना सा मे बड़ी घनिशता थी | शुरू मे रामूजी व बन्ना सा ने फोटो भी साथ – साथ खिचवाया हुआ था | रामूजी सोनार के सगपण मे ऊंट भी नखत बन्ना सा ही लेकर गए थे | रामूजी सोनार ने जबर सिंह के लड़के के पेट मे घुटन देखकर कांजी की ढनी मे ज्योत करने को कहा, घरवालो ने ज्योत करके रामूजी को देदी तब नखत बन्ना सा ने बहन सुगना के मुख से कहा कि मेरे स्थान आपने कहकर भी नहीं बनवाया है | क्या बात है ? जब जबर सिंह व कान सिंह ने कुछ दिनों की छूट लेकर स्थान बनाना शुरू किया वहाँ जागरण लगाया | धीरे – धीरे यह मेला विशाल होने लगा | पास मे एक राई के की लड़की के पेट मे फोड़ा हो गया था | वह बस मरने ही वाली थी कि किसी ने सलाह दी कि बन्ना सा की फेरी व प्र्शाद बोल दो, उसने वैसा ही किया उसके पेट मे से एक फिट लंबा जालधर निकाल गया और तीन दिन मे ठीक हो गई |

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