Sunday, May 18, 2025

Thursday, March 24, 2011

शिवगोरक्ष चरित् - गोरखनाथ


महायोगी गोरखनाथ को शिवगोरक्ष खने की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है | शिव योगेश्वर हैं | नाथ सम्प्रदाय मे उन्होने ही सबसे पहले मत्स्येंदारनाथजी को महायोगज्ञान का उपदेशाम्रत प्रदान किया था | नाथ सम्प्रदाय मे यह कहा जाता है कि शिव ने ‘गोरख’ के रूप मे मत्स्येंदारनाथजी से महायोगज्ञान पाया था | वे ही शिवगोरक्ष कहलाते है | गोरखनाथ को नाथदेवत कहा गया है | निर्मल स्फटिक के समान उनका गौर शरीर है, सिर पर जटा है, उनके तीन नेत्र हैं, वे माया से रहित है, वे तत्स्वरूप हैं, त्रिवेदस्वरुप हैं |
कल्पद्रुमतन्त्र मे गोरक्षस्तोत्रराज मे भगवान क्रष्ण ने उनका शिव रूप मे स्तवन किया है कि हे गोरक्षनाथ जी – आप निरंजन, निराकार, निर्विकल्प, निरामय, अगम्य, अगोचर, अल्क्ष्य हैं | सिद्ध आप की वन्दना करते हैं | आप को नमस्कार है | आप हठयोग के प्रवर्तक शिव हैं | अपने गुरु मत्स्येंदारनाथ की कीर्ति को बढ़ाने वाले हैं | योगी मन मे आप का ध्यान करते हैं | आप को नमस्कार है | आप विश्व के प्रकाशक हैं | आप विश्वरूप हैं | हे गोरक्ष ! आप को नमस्कार है | आप असंख्य लोकों के स्वामी हैं, नाथों के नाथशिरोमणि हैं, आपको नमस्कार है | भक्तों के प्रति अनुरक्त होकर ही शिवस्वरुप गोरक्ष योगानुशासन का उपदेश देते हैं | अपने ही जगदगुरुस्वरुप शक्तियुक्त आदिनाथ को नमस्कार कर गोरक्षनाथ सिद्धसिद्धान्त का बखान करते हैं |
महकलयोगशास्त्र मे शिव के स्वय कहा है कि मैं ही गोरक्ष - गोरखनाथ हूँ – हमारे इस रूप का बोध प्राप्त करना चाहिए | (नाथ) योगमार्ग के प्रचार के लिए मैंने गोरक्षरूप धारण किया है |
अहमेवस्मि गोरक्षो मद्रुपं तन्निबोधत |
योगमार्गप्रचाराय मया रूपमिदं धृतम् | |
महाराष्ट्रीय नाथसम्प्रदाय कि परम्परा मे श्रीमद भागवत में ग्यारहवें स्कन्ध के दूसरे अध्याय में नौ योगीश्वरों का वर्णन है | कवि-नारायण मत्स्येंदारनाथ, करभाजननारायण गहिनीनाथ, अन्तरिक्ष-नारायण ज्वालेन्द्र्नाथ (जालंदरनाथ), प्रबुधनारायण करणिपानाथ (क्रष्णपाद), आविहोत्रनारायण नागनाथ, पिप्प्लायन – नारायण चर्पटीनाथ, चमसनारायण रेवणनाथ, हरिनारायण भतृरनाथ (भतृरहरि) और द्रुमिलनारायण गोपीचन्दननाथ कहे गये हैं | इन नारायणो मे गोरखनाथ जी के नाम का न होना उनका शिवस्वरुप सिद्ध करता है और इस तरह उनका शिवगोरक्ष नाम प्रमाणित हो जाता है | ‘नाथसिद्धों कि बानियाँ’ संग्रह मे सिद्ध घोडाचौली के कथनसे भी पता चलता है कि अनन्तसिद्धों से गोरखनाथजी अतीत हैं | उन्हे ‘परचै जोगी सिंभ निवासा’ कहकर उनके शिवगोरक्षरूप को ही स्वीकार किया गया है |
यद्धपि शिवगोरक्ष (गोरखनाथ) ही श्रीनाथ हैं | तथापि लोकव्यवहार में महायोगज्ञान की प्रतिष्ठा के लिये गोरखनाथ के रूप मे मत्स्येंदारनाथजी से योगोपदेश प्राप्त किया अन्यथा यह प्रथ्वी बिना गुरु के रहती | उन्होने ‘गोरखबनी’ की एक सबदी में कहा है – ‘ताथै हम थापना थापी’ | आशय यह है कि शिवस्वरुप होकर भी शिवगोरक्षरूप में उन्होने मत्स्येंदारनाथजी से योगोपदेश प्राप्त किया |
‘गोरखबनी’ में ‘महादेव-गोरषगुष्टि’ मे भगवान शिव ने स्वय आत्मस्वरुप शिवगोरक्ष को ‘परम योगस्ंप्राप्त योगी’ खकार उनके प्रति महाज्ञान का कथन किया हैं | उसमे वर्णन हैं – ‘तत्वग्यान श्रीशम्भूनाथ अकथ कथित सुनो हो गोरष अवधूतं परम जोग संप्रापितं जोगी |’ अपने शिवगोरक्षस्वरुप को शिव ने तत्वज्ञान से सम्बोधित किया | ‘गोरखनाथ’ में ‘गोरषदत्त-गुष्टि’ (ज्ञानदीपबोध) में स्वय दत्तात्रेयजी ने गोरखनाथ जी को शिव कहकर प्रणाम किया हैं |
दत्तात्रेयजी का वचन है –
स्वामी तुमेव गोरष तुमेव रछिपाल
अनंत सिधां माही तुम्हें भोपाल ||
तुम हो स्यंभूनाथ नृवांण |
प्रणवे दत्त गोरख प्रणाम ||
हे गोरखनाथजी ! आप ही रक्षक हैं | असंख्य सिद्धों के आप शिरोमणि हैं | आप साक्षातं शिव (शम्भुनाथ) हैं | आप अलखनिरंजन परमेश्वर हैं | मैं नतमस्तक आप को प्रणाम करता हूँ |
संत कबीर का कथन है –
गोरख सोई ग्यान गमि गहै |
महादेव सोई मन की लहै ||
सिद्ध सोई जो साधै ईती |
नाथ सोई जो त्रिभुवन जती ||
श्रीगोरखनाथ, महादेव, सिद्ध और नाथ, चारों के चारों अभिन्न-स्वरुप एकतत्व हैं | महायोगी गोरखनाथजी शिव हैं, वे ही शिवगोरक्ष हैं | उनहोने महासिद्ध नाथयोगी के रूप मे दिवि योगशरीर में प्रकट होकर अपने ही भीतर व्याप्त अलखनिरंजन परबृहंम परमेश्वर का साक्षात्कार कर समस्त जगत् को योगामृत प्रदान किया |

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